Friday, October 28, 2005

गणितिय भाषा में कुछ बेतुकी कविताएँ
(१)
मैं और तुम
वृत्त की परिधि के
अलग अलग कोनों में बैठे
दो बिन्दु हैं,
मैनें तो
अपनें हिस्से का अर्धव्यास पूरा कर लिया,
क्या तुम केन्द्र पर
मुझसे मिलनें के लिये आओगी ?
(२)
मैनें कई बार
कोशिश की है
तुम से दूर जानें की,
लेकिन मीलों चलनें के बाद
जब मुड़ कर देखता हूँ
तो तुम्हें
उतना ही करीब पाता हूँ
तुम्हारे इर्द गिर्द
वृत्त की परिधि
बन कर रह गया हूँ मैं
(३)
तुम्हारे बताये अनुसार
मैं चली तो थी
अर्धव्यास की दूरी तय करके तुमसे मिलने को
मैं पहुंचने ही वाली थी केन्द्र पर
कि एक जीवा (chord)रास्ते में आ गई
रोक लिया रास्ता उसने मेरा
मुझे साफ सुनाई दे रही
तुम्हारी बेचैन सांसें
जीवा -जो कि वास्तव में व्यास था
वृत्त का फूल पिचक रहा था
हमारी सांसों के स्पंदन से
पर हम उसे पिघला न सके
कहीं कुछ कमी रही होगी
हमारी ऊष्मा में ।
मैं लौट आयी चुपचाप
उल्टे पैर परिधि पर
तुम्हारी सांसों की गरमी का अहसास लिये।
(४)
हम दोनों
समकोण समद्विबाहु त्रिभुज की
दो संलग्न भुजाओं पर स्थित बिन्दु हैं
दूर भाग रहे हैं एक दूसरे से९० डिग्री का कोण बनाये।
यह हमारा विकर्षण नहीं है
न कोई पलायन,
हम भाग रहे हैं उस विकर्ण(Hypotaneous) की ओर
जो इन भुजाओं को जोड़ता है
जिस पर चलने से
हमारे मिलने की कुछ संभावनायें
बाकायदा आबाद हैं।

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